Monday, November 23, 2015

दूसरों में अच्छाइयां देखना मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है

दूसरों में अच्छाइयां देखना मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है

प्रतियोगिता और होड़ शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। इनके आंतरिक भाव लगभग एक जैसे हैं। जब हम कोई भी कार्य करते हैं तो हमारे मन में यह विचार आया करते हैं कि मैं जो भी कार्य करूं वह इतना अच्छा करूं कि मेरी कोई बराबरी न कर सके।
       मैं किसी प्रतियोगिता में शामिल होता हूं तो प्रथम स्थान हासिल करूं। ठीक इसके विपरीत जो हमसे स्पर्धा कर रहा होता है वह भी ऐसा ही सोचता है कि मैं पूरी ताकत लगाकर इस प्रतियोगता को जीत लूंगा। हमारे मन में जब स्पर्धा करने का भाव जाग जाता है, तो हम एक अजीबो गरीब उत्साह से भर जाते हैं। हमारे मन में एक नए जोश का संचार होने लगता है। फिर तो हमारे मन का जुनून देखते ही बनता है।





           स्पर्धा का भाव सदैव नेक कार्र्यो के लिए किया जाना चाहिए, बुरे कार्र्यो के लिए कभी भी स्पर्धा नहीं करनी चाहिए। जब कोई देश सेवा, समाज सेवा और जनहित के लिए कोई कार्य कर रहा हो तो हमें भी ऐसे ही कार्य करके उससे आगे निकल जाने की अभिलाषा रखनी चाहिए या फिर पढ़ाई, लिखाई, खेलकूद आदि की प्रतियोगिताओं में भाग लेना चाहिए। हम यदि किसी आफिस में कार्यरत हैं या व्यापार व कृषि के क्षेत्र से जुड़े हैं, तो अच्छे कार्य करने की तीव्र इच्छा रखनी चाहिए। अपने सहयोग करने वालों से कभी ईष्र्या का भाव नहीं रखना चाहिए। 
            दूसरों में अच्छाइयां देखना मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है। दूसरों में अच्छाइयां देखने से अपने सद्गुणों का विकास होता है। हर इंसान में कोई न कोई सद्गुण जरूर होता है। किसी में सच्चाई अधिक होती है, तो दूसरा अच्छा कलाकार होता है। कोई श्रमशील है तो कोई साहसी है। कोई दानी है तो किसी में चरित्रबल है। इस तरह कोई न कोई गुण हर इंसान में है। इन गुणों को हमें अपनी पारखी नजरों से जरूर परखना चाहिए और हमें भी वैसा ही बनने की स्पर्धा करनी चाहिए। ईष्र्या कभी भी नहीं करनी चाहिए। स्वयं के व्यक्तित्व को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बनाने की यही पद्धति है। दूसरे में छिद्रान्वेषण के स्वभाव को त्यागकर प्रत्येक व्यक्ति में अच्छाइयां तलाशने का प्रयास करना चाहिए। हमें अपने दोष-दुगरुणों को भी तलाशने और उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए। औरों में दोष देखने का प्रयास न करके अपने अंदर उदारता, दूरदर्शिता, सहनशीलता जैसे सद्गुणों का विकास करते रहें।

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